baglamukhi shabhar mantra Options



कलि बिलोकि जग हित हर गिरिजा। साबर मंत्र जाल जिन्ह सिरिजा॥

यहाँ पर उल्लिखित शाबर मन्त्र के सम्बन्ध में अनुभवी साधकों का यह निष्कर्ष है कि यह परमशक्तिशाली मन्त्र है और इसका प्रयोग कभी निष्फल नहीं होता है। यह प्रबल बगलामुखी शत्रु विनाशक मंत्र है। इसका सिद्धि-विधान भी अत्यन्त ही सरल है। इसके लिए साधक को यह निर्देश है कि भगवती बगला की सम्यक् उपासना एवं उपचार के उपरान्त प्रतिदिन दो माला जप एक महीने तक करें। इतने अल्प समय और अल्प परिश्रम से ही यह मन्त्र अपना प्रभाव प्रकट करने लगता है।

पीत-वर्णां मदाघूर्णां, दृढ-पीन-पयोधराम् ।

“ॐ बग्लामुख्ये च विद्महे स्तम्भिन्यै च धीमहि तन्नो बगला प्रचोदयात्।”

After a while, many saints and spiritual masters further enriched the Shabar mantra tradition. They collected and compiled these mantras, as well as their collections became referred to as 'Shabar Vidya', or even the knowledge of Shabar mantras.

पाणिभ्यां वैरि-जिह्वामध उपरि-गदां विभ्रतीं तत्पराभ्याम् ।

योषिदाकर्षणे शक्तां, फुल्ल-चम्पक-सन्निभाम् ।

दिवाली पर संपूर्ण पूजा विधि मंत्र सहित करें पूजन।

To execute Baglamukhi Shabar Mantra Sadhana, 1 needs to arrange themselves mentally and bodily. The practitioner need to adhere to a particular course of action that includes the chanting of mantras and performing many rituals.

महादेव और पार्वती ने ही मनुष्यों के दुख निवारण हेतु शाबर मंत्रों की रचना की। शाबर ऋषि व नव नाथों ने भी कलियुग में मनुष्यों के दुखों को देखते हुए की व सहज संस्कृत ना पढ़ पाने के कारण भी है, आँख की पीड़ा-अखयाई ,कांख की पीड़ा read more -कखयाइ, पीलिया, नेहरूआ, ढोहरूआ, आधासीसी ,नज़र भूत प्रेत बाधा से मुक्ती हेतु ही की थी जिससे उपचार में विशेष सहायता प्राप्त हुई और रोगी का ततछण आराम मिल जाता है। आज भी झाड़ा लगवाने कुछेक असाध्य रोगों के विशेष प्रभाव शाली है,

And lastly, it is recommended to abide by a vegetarian diet plan, Specifically on the times when you have interaction in powerful mantra observe. Consuming sattvic (pure and light) food stuff aids in sustaining a balanced state of thoughts and encourages spiritual purity.

ॐ ह्रीं ऎं क्लीं श्री बगलानने मम रिपून नाशय नाशय ममैश्वर्याणि देहि देहि शीघ्रं मनोवान्छितं साधय साधय ह्रीं स्वाहा ।

वन्दे स्वर्णाभ-वर्णां मणि-गण-विलसद्धेम- सिंहासनस्थाम् ।

जिह्वाग्रमादाय कर-द्वयेन, छित्वा दधन्तीमुरु-शक्ति-युक्तां।

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